प्रतियोगिता वैसी होनी चाहिए जिसमें खुशी मिले …

प्रतियोगिता वैसी होनी चाहिए जिसमें खुशी मिले …अगर प्रतियोगिता करके दुख मिलने लगे या दुख मिलने की संभावना लगने लगे …उस दिन खुद को प्रतियोगिता से बाहर कर लेना चाहिए ! क्यो की किसी भी व्यक्ति का मूल उद्देश्य जीवन में खुश रहना है ! व्यक्ति को एक बात समझ लेनी चाहिए कि जो कुछ भी नियति ने आपको दिया है उसको स्वीकार कर लेना चाहिए ! जैसे अमूमन लोगो को अपनी क्षमता का अंदाज़ा होता है …लेकिन प्रतियोगिता के कारण ढीठता में जान तक गवा बैठते है ! आजकल जिम करते हुए हार्ट अटैक की घटनाएं सुनने को मिलने लगा है ! मैं कोई मेडिकल practioners नही हूँ लेकिन मैं रेगुलर gym जाने के नाते अपनी समझ से कह सकता हूँ कि क्षमता से अधिक अपने शरीर को थकाना या क्षमता से अधिक अपने शरीर से काम लेने की कोशिश हमेशा जानलेवा साबित होता है ! Gym में आनेवाले बहुत सारे लड़को को देखता हूँ …उनके दिमाग में जी भरके प्रतियोगिता भरा होता है ! अगर किसी ने 100kg की लिफ्टिंग की …. तो वो 120kg की करने की कोशिश करते है ! ऐसी सोच ऐसी प्रतियोगिता बहुत खतरनाक होता है जो जान तक लेता है ! प्रतियोगिता का नशा संतुलन में होना चाहिए… प्रकृति ने जितना कुछ दिया है जितनी क्षमता दी है उसको स्वीकार कर खुशी से जीवन जीने की कोशिश करना चाहिए ! क्यो की कोई भी हमेशा श्रेष्ठ बना नही रह सकता है ! श्रेठता का नशा कभी भी अपने सर नही चढ़ाना चाहिए … क्यो की नियति ने श्रेष्ठ बनाया है किसी को इसलिए कोई श्रेठ है यही मूल सत्य है !

संपादक

मिथिलेश सिंह

दिल्ली (नोएडा )

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